जीवन की यात्रा और बदलती प्राथमिकताएँ

life journey

जीवन की शुरुआत में हमारा ध्यान सिर्फ खुद पर होता है—हमारी ज़रूरतें, हमारे सपने, हमारी खुशियाँ। फिर धीरे-धीरे हम अपने माता-पिता और भाई-बहनों के प्रति जुड़ाव महसूस करने लगते हैं। बचपन की मासूमियत के बाद स्कूल और कॉलेज के दोस्त हमारी दुनिया बन जाते हैं।

जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, वास्तविक जीवन की ज़िम्मेदारियाँ हमारे सामने आती हैं। नौकरी की तलाश, पैसे कमाना, और खुद के पैरों पर खड़ा होना—यही प्राथमिकताएँ बन जाती हैं। इस दौर में रोटी, कपड़ा और एक छत हमारी पहली ज़रूरत बन जाती है।

फिर हमारे जीवन में रिश्ते आते हैं। एक जीवनसाथी के रूप में कोई हमारे मन की बात सुनने और समझने वाला मिल जाता है। इस नए रिश्ते की गहराई बढ़ती है और माता-पिता और भाई-बहनों से थोड़ी दूरी स्वाभाविक रूप से आ जाती है। अब प्राथमिकता होती है—आर्थिक स्थिरता और एक बढ़ते हुए परिवार का भविष्य।

बच्चों के आने के बाद हमारी ज़िम्मेदारियाँ और बढ़ जाती हैं। अब हमारा ध्यान बच्चों की परवरिश, शिक्षा और सुरक्षा पर केंद्रित हो जाता है। दोस्तों से दूरी और अपने लिए समय की कमी इस चरण की सामान्य स्थिति बन जाती है।

कुछ समय बाद, जब जीवन थोड़ा स्थिर हो जाता है, हम सामाजिक प्रतिष्ठा और पहचान की ओर आकर्षित होते हैं। हमें लगता है कि अब हमें समाज में अपनी जगह बनानी है, कुछ नाम और सम्मान पाना है।

40 की उम्र आते-आते जीवन का एक नया सच सामने आता है। हमारे माता-पिता अब वृद्ध हो चुके होते हैं और उनकी देखभाल हमारी प्राथमिकता बन जाती है। पुरानी यादें सताने लगती हैं और हम अपने पुराने दोस्तों की तलाश करते हैं ताकि फिर से वही युवापन महसूस कर सकें।

फिर एक समय ऐसा आता है जब हम महसूस करते हैं कि आत्म-शांति और आत्म-साक्षात्कार, किसी भी सामाजिक मान्यता या दौलत से अधिक महत्वपूर्ण हैं। हम समझते हैं कि इस दुनिया में कोई किसी का नहीं होता।

इन सभी चरणों के बीच कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो यह सवाल उठाते हैं—”मैं इस दुनिया में क्यों हूँ?” यही वह जागृति होती है जहाँ से असली उद्देश्य की शुरुआत होती है। अब जीवन सिर्फ पाने का नहीं, बल्कि देने का बन जाता है। समाज के लिए कुछ करना, दूसरों की मदद करना और एक सार्थक विरासत छोड़ना ही हमारा लक्ष्य बन जाता है।

तो आप इस दुनिया में क्यों आये हो “ये जानना” और इस पर अपने उद्देश्य का “अनुशरण करना” ही अपने जीवन को सफल बनाना ही आपका लक्ष्य होना चाहिए।

और हाँ याद रखिये बच्चों का पालन पोषण और पैसे कामना आपका अंतिम लक्ष्य नहीं है।

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